क्या भूलूं क्या याद करूं मैं: हरिवंशराय बच्चन की कविता
आम आदमी की भाषा और मनोभावना के कवि कहलानेवाले हरिवंश राय बच्चन की छोटी-सी कविता ‘क्या भूलूं, क्या याद करूं ...
आम आदमी की भाषा और मनोभावना के कवि कहलानेवाले हरिवंश राय बच्चन की छोटी-सी कविता ‘क्या भूलूं, क्या याद करूं ...
हाल के समय मे व्यावहारिक स्थितियों को बयान करती बेहद चुभनेवाली कविताओं की रचना कर रहे हैं युवा दलित कवि ...
तुलसी दास और रामचरित मानस विवाद के बीच क़रीब 25 साल पहले प्रकाशित कविता संग्रह ‘माटी के वारिस’ की कविता ...
बेहतर अवसर की तलाश में अपने गांव को छोड़कर शहरों की ओर रुख़ करना ज़्यादातर लोगों की मजबूरी होती है. ...
भारतीय कृषकों की स्थिति, परिस्थिति पर आधारित मैथिलीशरण गुप्त की कविता ‘किसान’ भले ही दशकों पहले लिखी गई हो, पर ...
आगे बढ़ना ही जीवन है और जीवन में आगे बढ़ते हुए बहुत कुछ छूट और टूट जाता है. टूटी और ...
जहां गहरी ख़ामोशी होती है, वहीं सबसे ज़्यादा शोर होता है. जो चला जाता है, वह हमेशा हमेशा के लिए ...
लोकतंत्र में जनता को ख़ुश करने का एक ज़रिया है. जिस लोकतंत्र को जनता अपनी जीत समझती है, उस लोकतंत्र ...
स्त्रियों का लिखा उनका स्वयं का भोगा गया दुख होता है. क्यों उनकी लिखी पंक्तियों को सीरियसली लेना चाहिए, बता ...
जहां विडंबना है, विरोधाभास है, वहां कविता है. कृषि प्रधान देश भारत में कृषकों की हालत को बयां करती अरुण ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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