बूढ़ा होता अख़बारवाला और घटती छोटी बचत: अरुण चन्द्र रॉय की कविता
अपने आसपास की रूटी न घटनाओं और लोगों को संवेदनशीलता की नज़र से एक कवि ही देख सकता है. बूढ़ापे ...
अपने आसपास की रूटी न घटनाओं और लोगों को संवेदनशीलता की नज़र से एक कवि ही देख सकता है. बूढ़ापे ...
समय के साथ कई चीज़ें बदल जाती हैं. पर इस बदलाव में भी कई चीज़ें नहीं बदलतीं. रूपक के तौर ...
बिना बोले बर्फ़ बहुत कुछ कहती है, पर उसे समझने के लिए एक कवि हृदय चाहिए. संवेदनशील कवि अरुण चन्द्र ...
बेहतर अवसर की तलाश में अपने गांव को छोड़कर शहरों की ओर रुख़ करना ज़्यादातर लोगों की मजबूरी होती है. ...
जहां विडंबना है, विरोधाभास है, वहां कविता है. कृषि प्रधान देश भारत में कृषकों की हालत को बयां करती अरुण ...
कहते हैं, कविताएं चित्र होती हैं. दीपावली के कुछ चित्रों के बारे में ख़ुद कवि अरुण चन्द्र रॉय बताते हुए ...
आसपास की चीज़ों को अलग नज़रिए से देखना एक कवि की पहचान है. कवि अरुण चन्द्र रॉय बाज़ार, मिट्टी और ...
नदी और पुल के अनूठे रिश्ते को परिभाषित करती अरुण चन्द्र रॉय की कविताएं. 1 नदी और पुल के बीच ...
अरुण चन्द्र रॉय की कविता ‘डरता हूं मेरे बच्चे’ बयां करती है एक मध्यवर्गीय कस्बाई पिता का भय. कार्टून चैनलों ...
मां की महानता का वर्णन करने के लिए सबसे घिसी-पिटी कहावतों में एक है ‘भगवान हर जगह नहीं रह सकता ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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