मोर न होगा उल्लू होंगे: बाबा नागार्जुन की कविता
आज का दौर हो या दशकों पहले का. जब कभी तानाशाही जैसा कुछ दिखाई देता है तो मीडिया भले ही ...
आज का दौर हो या दशकों पहले का. जब कभी तानाशाही जैसा कुछ दिखाई देता है तो मीडिया भले ही ...
सरकार कोई भी हो, भले ही उसके जनता के हित के कितने ही वादे क्यों न किए हों, एक समय ...
छोटे बच्चे की मनोहारी मुस्कान से सुंदर और सुकूनदायक और क्या हो सकता है? बाबा नागार्जुन की कविता यह दंतुरित ...
एक लेखक को अपनी मेहनत का सही मोल नहीं मिल पाता. और जो मिलता भी है उसके लिए प्रकाशक की ...
व्यवस्था विरोधी कवियों की सूची में बाबा नागार्जुन का नाम काफ़ी ऊपर आता है. उन्होंने इंदिरा गांधी के तानाशाह शासन ...
आज़ादी के कुछ साल बाद जब जनता की उम्मीदों पर पानी फिरता दिखा, तब उस दौर के कवियों, लेखकों ने ...
बिना लाग लपेट के कविताएं करनेवाले बाबा नागार्जुन की यह कविता गांधी जी के तीनों बंदरों की उपमा के साथ ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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