कुछ लोग आज़ादी मिलने के पहले भी आज़ाद थे और कुछ लोग कभी आज़ाद नहीं हो सकते. इसी सच्चाई का...
गांवों में बिजली पहुंचने से पहले पेट्रोमेक्स लैम्प से वहां की रातें रौशन होती थी. पेट्रोमेक्स लैम्प को देहातों में...
तेज़ी से बदल रहे शहरी, ग्रामीण और क़स्बाई लैंडस्केप को शब्दों के कैनवास पर उतारती अरुण कमल की कविता ‘नए...
अठारहवीं सदी के शायर-कवि नज़ीर अकबराबादी को आम आदमी का कवि कहा जाता था. अपनी लोकप्रिय रचना आदमी नामा में...
भागती दुनिया में चिठ्ठियां अब शायद ही कोई भेजता हो. वैसे भी जब सूचना लाइव भेजी जा सकती हो तो...
ये कृति मेरी नज़र में केवल यात्रा वृत्तांत न होकर एक कालजयी रचना है, जिसमें जितना यात्रा वृत्तांत है, उससे...
घर वह जगह है, जहां हमें पूरी दुनिया जीतने के बाद लौटना है. पर कुछ ऐसे बेघर लोग भी होते...
एक पिता के लिए बेटियां क्या होती हैं, बता रही है कुंवर बेचैन की कविता ‘बेटियां’. बेटियां शीतल हवाएं हैं...
बारिश सिर्फ़ आसमान से बरसती हुई पानी की बूंदें नहीं हैं, बल्कि एक कवि की नज़र से देखने पर बहुत...
अरुण चन्द्र रॉय की कविता ‘डरता हूं मेरे बच्चे’ बयां करती है एक मध्यवर्गीय कस्बाई पिता का भय. कार्टून चैनलों...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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