पूरी दुनिया ने बीते दो वर्ष से ज़्यादा का समय जिस तरह की अभूतपूर्व त्रासदी के साथ बिताया है, ऐसे में हमारा यह दोहराना कि स्वास्थ्य बीमा यानी मेडिकल इंश्योरेंस ज़रूरी है, और भी आवश्यक हो गया है. महामारी के दौरान बीमार अपनों की चिकित्सा के लिए न जाने कितने लोगों को अपने पूरे जीवन की कमाई दांव पर लगानी पड़ी, फिर भी उनके अपने बड़ी मुश्क़िल से बच सके और कई लोगों के परिजन तो बच भी नहीं सके. जीवन-मृत्यु हमारे हाथ में भले ही न हो, लेकिन बीमारी के समय में अपनी गाढ़ी कमाई के पैसों को व्यर्थ जाने देने से तो हम बचा ही सकते हैं.
न तो सेहत ऐसी चीज़ है और ना ही समय, जिसके बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सके. बीते दो वर्ष हमें यह सीख अच्छी तरह दे चुके हैं. भले ही आपके पास आपाताकलीन स्थिति के लिए अपने ऑफ़िस की ओर से करवाया हुआ हेल्थ इंश्योरेंस हो, लेकिन फिर भी अपनी ओर से हेल्थ इंश्योरेंस करवाना हमेशा अच्छा होता है.
अपनी कोचिंग सर्विस चलाने वाली मानसी शर्मा की मां को कोरोना काल के दौरान घुटनों की सर्जरी की आपत ज़रूरत पड़ी. जब उन्होंने हॉस्पिटल में सर्जरी के ख़र्च के बारे में पता किया तो वे यह जान कर हैरान रह गईं कि हेल्थ इंश्योरेंस न होने पर यदि वे सर्जरी करवाएंगी तो उसका ख़र्च हेल्थ इंश्योरेंस होने पर करवाए गए ख़र्च से दोगुना होगा. जबकि हेल्थ इंश्योरेंस होने पर यह ख़र्च आधा भी हो जाएगा और इसका लगभग 90% ख़र्च वे इंश्योरेंस कंपनी से क्लेम भी कर सकेंगी.
यह बताने के बाद भी हम जानते हैं कि मेडिकल इंश्योरेंस को आप यह कह कर आसानी से टाल सकते हैं कि जबरन ही इसका प्रीमियम देना होगा और आपको सेहत से जुड़े बुरे-बुरे ख़्याल भी आते रहेंगे. लेकिन यदि आप पिछले दो वर्षों पर नज़र डालें और यह सोच कर देखें कि क्या होगा जब कभी आप या आपके परिजन बीमार हों और आपके पास इलाज के पैसे भी न हों? जबकि यदि आपने इंश्योरेंस ले रखा होगा तो प्रीमियम देने के बाद आप कम से कम इस बात को ले कर तो निश्चिंत ही होंगे कि मेडिकल ख़र्चों का दबाव आप पर लगभग न के बराबर है. तो आइए, जानते हैं कि कैसे अपने लिए उपयुक्त हेल्थ इंश्योरेंस का चुनाव किया जा सकता है.
तुरंत शुरुआत कीजिए
जितनी कम उम्र में बीमा करवाएंगे, उतना ही अच्छा रहेगा. यदि 30 वर्ष की उम्र में हेल्थ इंश्योरेंस करवाएंगी तो 60 वर्ष की उम्र में बीमा करवाने की तुलना में आपको आधी से कम राशि ख़र्च करनी होगी. कई पॉलिसियों के तहत हर उस वर्ष, जब आप बीमे से जुड़ा कोई दावा नहीं करते/करती आपका बीमा कवर पांच प्रतिशत तक बढ़ा दिया जाता है. इसे तब तक बढ़ाया जाता है, जब तक कि यह आपकी कुल बीमित राशि के 50 प्रतिशत तक न पहुंच जाए. और हां, इस राशि पर टैक्स में छूट तो मिलती ही है.
इंश्योरेंस से जुड़े सभी दस्तावेज़ ध्यान से पढ़िए
हेल्थ इंश्योरेंस लेने से पहले पॉलिसी को ध्यान से पढ़िए और समझिए, क्योंकि उपभोक्ताओं के सबसे ज़्यादा विवाद के मामले हेल्थ इंश्योरेंस से संबंधित ही होते हैं. इसकी वजह यह है कि लोग बीमा के दस्तावेज़ों को ध्यान से नहीं पढ़ते. पॉलिसी लेते समय आप इन बातों पर ज़रूर ध्यान दें:
1. यह जांच लें कि कौन-कौन सी बीमारियां बीमे की सूची में शामिल हैं और किन्हें इससे बाहर रखा गया है. मोटापे से जुड़ी बीमारियां, एचआईवी से जुड़े ख़र्च या फिर दवाओं के ख़र्च को अक्सर बीमे में शामिल नहीं किए जाते हैं. वहीं कुछ कंपनियां दंगों या आतंकवादी हमलों में घायल होने पर किए जानेवाले उपचार के ख़र्चों का भुगतान नहीं करती हैं.
2. ध्यान रखें कि यदि बीमा पॉलिसी लेने के पहले से ही आपको कोई बीमारी है तो उसे पॉलिसी में शामिल नहीं किया जाता है. पॉलिसी के अनुसार कुछ वर्षों बाद ही आप इसके इलाज के लिए राशि का दावा कर सकते हैं. पॉलिसी लेने से पहले ही आप इस बारे में खुलासा कर दें कि आपको कौन सी बीमारी है. साथ ही किसी विशेष बीमारी के मद में ख़र्च की सीमा का भी पूरा ध्यान रखें. हर मद, जैसे-कमरे का किराया, डायगनोस्टिक फ़ीस, सर्जरी की फ़ीस आदि के लिए ख़र्च की अलग-अलग सीमा होती है. ये इस तरह बनाई जाती है कि जब दावा करना हो तो यदि आपका दावा तीन लाख रुपए का बनता हो तो तीन लाख की जगह केवल दो लाख अस्सी हज़ार रुपए ही मिलें.
3. आप किसी ऐसी कंपनी का इंश्योरेंस लें, जिसमें आपके घर के पास स्थित या फिर वह अस्पताल शामिल हो, जहां आप अक्सर जाते हैं.
एक से ज़्यादा बीमा पॉलिसीज़ कब लें
यदि आप सिंगल हैं तो अपने लिए या अपने माता पिता के लिए कंपनी की ग्रुप बीमा पॉलिसी से अलग पॉलिसी ले सकते हैं. इसकी वजह यह है कि कंपनी की बीमा पॉलिसी का कवर कई बार इतना नहीं होता कि वे आपके और आपके माता-पिता (ज़ाहिर है, वे उम्रदराज़ होंगे और ऐसे में उनकी मेडिकल संबंधी ज़रूरतें ज़्यादा हो सकती हैं) के यानी तीन लोगों के इलाज के लिए पूरा पड़ सके. यदि आप मल्टिपल कवर ले रहे हैं तो इन बातों का ध्यान रखें:
1. किसी एक व्यक्ति के इलाज की पूरी कीमत को दो पॉलिसियों के बीच नहीं बांट सकते. उदाहरण के लिए किसी नर्सिंग होम के चार लाख रुपए के बिल के लिए आप दो अलग-अलग बीमा कंपनियों से दावा नहीं कर सकते, पर आप इनका अलग-अलग फ़ायदा उठा सकते हैं. एक का इस्तेमाल ज़रूरत के समय अपने लिए और दूसरी का अपने माता-पिता या अन्य सदस्यों के लिए, जो आप पर निर्भर हैं.
2. यदि आप विवाहित हैं और आपके बच्चे भी हैं तो आप व्यक्तिगत पॉलिसी लेने के बजाय फ़ैमिली फ़्लोटर पॉलिसी ले सकते हैं. इसका प्रीमियम आप सब के लिए अलग-अलग बीमा पॉलिसी के लिए दिए गए कुल प्रीमियम से काफ़ी कम होगा. और इस बात की संभावना कम ही है कि आप सब को एक साथ ही सुरक्षा कवर की आवश्यकता पड़े अत: ज़रूरत के समय अधिक राशि भी उपलब्ध हो सकेगी. बच्चों के 25 वर्ष के हो जाने तक वे इस पॉलिसी में शामिल रहते हैं.
ये प्रैक्टिकल बातें याद रखें
हेल्थ इंश्योरेंस करवाएं तो इन व्यावहारिक बातों का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है. यदि आप यहां बताई हुई बातों को अमल में लाएंगे तो आपको आपात स्थित में क्लेम पाने में और इलाज करवाने में आसानी होगी:
* हेल्थ कार्ड्स को ऐसी जगह रखें, जहां वो आसानी से मिल जाएं. इसके बारे में अपने परिवार के सदस्यों को भी जानकारी दें, ताकि उन्हें पता हो कि इन्हें आपने कहां रखा है.
* आपात स्थिति हो या फिर आप कोई सर्जरी कराने की योजना बना रहे हों, आपको इस बारे में थर्ड पार्टी एड्मिनिस्ट्रेटर्स (टीपीए), जैसे-एमडी, मेडीअसिस्ट, इंडिया हेल्थकेयर सर्विसेज़ और टीटीके हेल्थकेयर सर्विसेज़ को सूचित करें. ये टीपीए आपके और इंश्योरेंस कंपनी के बीच सेतु का काम करेंगे. इलाज या सर्जरी से पहले टीपीए आपको इसकी अनुमति देगा. आपकी सूचना मिलने पर टीपीए वहां पहुंचेगा और चिकित्सीय आवश्यकताओं के बारे में पता करने के बाद आपको इस बात की जानकारी देगा कि इंश्योरेंस कंपनी से आपको कितना पैसा मिल सकता है. अत: ऐसे दस्तावेज़ और बिल सही तरीक़े से रखें, जिनसे पता चलता हो कि सर्जरी वाक़ई आपके लिए ज़रूरी है.
* यदि किसी वजह से आपको ऐसे अस्पताल में इलाज करवाना पड़ता है, जो आपकी इंश्योरेंस कंपनी की सूची में नहीं है तो बिल का भुगतान आपको ही करना होगा. बाद में टीपीए आपको इसका भुगतान कर देगा.
* यदि आप ऐसे अस्पताल में जाते हैं, जो उनकी सूची में है तो कैशलेस (नगद रहित) सुविधा का लाभ उठा सकते हैं. इस स्थिति में इंश्योरेंस कंपनी आपके इलाज में लगी राशि का भुगतान सीधे अस्पताल को करती है. पर याद रखें कि बावजूद इसके अस्पताल आपसे कुछ पैसा ऐड्वांस में मांग सकता है, जो पूरी प्रक्रिया के बाद फ़ाइनल बिल के साथ रिफ़ंड कर दिया जाता है.
फ़ोटो : फ्रीपिक