हिंदी साहित्य के स्वर्णिम काल के प्रमुख हस्ताक्षरों में एक रहीं जानी-मानी लेखिका मन्नू भंडारी नहीं रहीं. उनके उपन्यास ‘आपका बंटी’ और ‘महाभोज’ हिंदी के सर्वकालीन लोकप्रिय उपन्यासों में जगह रखते हैं.
पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहीं जेष्ठ लेखिका मन्नू भंडारी का एक सप्ताह उपचाराधीन रहने के बाद आज यानी 15 नवंबर को निधन हो गया. कल दोपहर 12.30 बजे लोधी रोड, नई दिल्ली स्थित विद्युत शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. यूं तो मन्नू जी पिछले काफ़ी समय से लेखन में सक्रिय नहीं थीं, पर लंबे समय से लेखन से दूर रहने के बावजूद मन्नू भंडारी का होना ही हिंदी लेखन से जुड़े लोगों के लिए प्रेरणा और आशीर्वाद की तरह था. आख़िरकार, वे हिंदी लेखन के उन वृक्षों में थीं, जिसकी छत्रछाया ने हज़ारों पौध विकसित हुए, अपनी ख़ास जगह बनाई.
हिंदी के पटल पर ख़ाली हो गई एक बड़ी जगह
हिंदी की दुनिया में मन्नू भंडारी के क्या मायने थे, यह हमन राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी से जानना चाहा, क्योंकि मन्नू जी की ज़्यादातर किताबें राजकमल समूह के इम्प्रिंट राधाकृष्ण प्रकाशन से ही प्रकाशित हुई हैं. इस शोकपूर्ण अवसर पर मन्नू जी को याद करते हुए अशोक महेश्वरी ने बताया,‘‘वे हिन्दी के सबसे ज़्यादा पढ़े जाने वाले लेखकों में रही हैं. प्रकाशक के रूप में हमें हमेशा उनकी रचनात्मकता और सहयोगी भाव ने प्रभावित किया. उनके न रहने से हिन्दी के पटल पर एक बड़ी जगह ख़ाली हो गई है जो हमेशा हमें उनकी अनुपस्थिति का भान कराती रहेगी. राजकमल प्रकाशन समूह उनकी स्मृति को वंदन करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है.’’
हिंदी कहानी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में बड़ा हाथ रहा मन्नू जी का
मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्य प्रदेश के भानपुरा में हुआ था. शुरुआती पढ़ाई अजमेर, राजस्थान में हुई. कोलकाता एवं बनारस विश्वविद्यालयों से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की. पेशे से अध्यापक मन्नू जी ने लंबे समय तक दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में पढ़ाया.
हिन्दी साहित्य के अग्रणी लेखकों में गिनी जाने वालीं मन्नू भण्डारी ने बिना किसी वाद या आंदोलन का सहारा लिए हिन्दी कहानी को पठनीयता और लोकप्रियता के नए आयाम दिए. ‘यही सच है’ शीर्षक उनकी कहानी पर आधारित बासु चटर्जी निर्देशित फिल्म ‘रजनीगंधा’ ने साहित्य और जनप्रिय सिनेमा के बीच एक नया रिश्ता बनाया. बासु चटर्जी के लिए उन्होंने कुछ और फ़िल्में भी लिखीं. उनकी कई कहानियों का नाट्य-मंचन भी हुआ. ‘महाभोज’ उपन्यास का उनका नाट्य-रूपांतरण आज भी देश भर में अनेक रंगमंडलों द्वारा खेला जाता है.
उनके उपन्यास ‘आपका बंटी’ को दाम्पत्य जीवन तथा बाल-मनोविज्ञान के संदर्भ में एक अनुपम रचना माना जाता है. जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने ‘एक कहानी यह भी’ नाम से अपनी आत्मकथा भी लिखी जिसे मध्यवर्गीय परिवेश में पली-बढ़ी एक साधारण स्त्री के लेखक बनने की दस्तावेज़ी यात्रा के रूप में पढ़ा जाता है.
सफल लेखिका का वैवाहिक जीवन विवादित रहा
हिन्दी के लब्ध-प्रतिष्ठ कथाकार एवं संपादक राजेन्द्र यादव की जीवन-संगिनी रहीं मन्नू जी ने अपने लेखन में स्वतंत्रता-बाद की भारतीय स्त्री के मन को एक प्रामाणिक स्वर दिया और परिवार की चहारदीवारी में विकल बदलाव की आकांक्षाओं को रेखांकित किया. जहां मन्नू हिंदी के शीर्ष लेखकों में शामिल रहीं, वहीं लेखन के क्षेत्र में बड़ा नाम राजेन्द्र यादव आगे चलकर हंस पत्रिका के आजीवन संपादक बने रहे. उन्होंने हिंदी लेखकों की नई पौध तैयार करने में अहम् योगदान दिया. इन दोनों प्रतिभाशाली व्यक्तियों के वैवाहिक जीवन ने कई उतार-चढ़ाव देखे. दोनों अलग रहने लगे थे. हां, दोनों ने ही अपने रिश्ते की मर्यादा बनाए रखी और इस बारे में विवादित बयानों से बचते रहे. इन दोनों हस्तियों को जोड़ने का काम करती थीं, इनकी सुपुत्री रचना यादव, जो कि एक जानीमानी कत्थक नृत्यांगना हैं. बहरहाल हम इतना कह सकते हैं कि मन्नू भंडारी का जाना हिंदी लेखन के एक युग के अंत होने जैसा है. कुछ महीने पहले जिस तरह दिलीप कुमार के निधन ने हिंदी फ़िल्म जगह को अनाथ कर दिया था, उसी तरह हिंदी लेखन के लिए मन्नू भंडारी का जाना रहा है.