ग़ुलाम: रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ की कविता
सदियों से शक्तिशाली लोग, वर्ग या जातियां कमज़ोरों को ग़ुलामी की बेड़ियों में जकड़ती रही हैं. अतीत की उन क्रूरताओं ...
सदियों से शक्तिशाली लोग, वर्ग या जातियां कमज़ोरों को ग़ुलामी की बेड़ियों में जकड़ती रही हैं. अतीत की उन क्रूरताओं ...
अज्ञेय की सबसे ज़्यादा कोट की जानेवाली लघु कविताओं में प्रमुख है ‘सांप’. कविता में सांप को माध्यम बनाकर अज्ञेय ...
‘तुम से पहले जो इक शख़्स यहां तख़्त-नशीं था, उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था’ ...
दलित-पिछड़े समाज पर अत्याचार की ख़बरें जब-तब हमारे लोकतांत्रिक देश में सुनाई-दिखाई पड़ जाती हैं. दलित चेतना की मुखर आवाज़ ...
इश्क़ में पड़े हर इंसान को सबसे अधिक कुछ मिलता है तो वह है इंतज़ार. इश्क़ के इंतज़ार में पड़े ...
आदिवासी और आदिवासी लड़कियों के कठिन और संघर्षों से भरे जीवन के रोमैंटिसिज़म को तगड़ा जवाब देती है संथाली कवयित्री ...
अक्सर लोगों को नींद नहीं आती तो वे दूसरों को भी सोने नहीं देते. दिवंगत कवि चंद्रकांत देवताले की कविता ...
आज़ादी किसे नहीं पसंद? एक पंछी भी सोने के पिंजरे में सारी-सुख सुविधाओं का लाभ लेने के बजाय संघर्ष से ...
कुछ ज़िंदगियों के मुक्कदर में दर्द ही दर्द होता है. ऐसे ही दर्द को समेटती है मुनव्वर राना की गज़ल. ...
जो हमारे पास होता है, उस उससे ज़्यादा उस चीज़ को पाने की कामना करते हैं, जो हमारे पास नहीं ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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