घर पहुंचना: कुंवर नारायण की कविता
हम सभी जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंचना चाहते हैं. घर पहुंचने के दौरान की जानेवाली यात्रा को बयां कर ...
हम सभी जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंचना चाहते हैं. घर पहुंचने के दौरान की जानेवाली यात्रा को बयां कर ...
भारत में यादें, जल्दी पुरानी हो जाती हैं. यहां तक कि हम अपना भोगा दुख तक भूल जाते हैं. जय ...
धरम की बनावट और समाज के ताने-बाने में इसकी बुनावट को कवि रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ की यह कई परतों को ...
हम हर दिन ख़ुद को और सभ्य बनाने की कोशिश करते हैं? हमारी यह कोशिश कितनी अप्राकृतिक है, बता रही ...
मां, सिर्फ़ मां होती है, चाहे इंसान की हो या किसी और जानवर की. कविता गाय और बछड़ा में मशहूर ...
एक आम हिन्दुस्तानी की पहुंच से कितनी दूर है हिन्दुस्तान की राजधानी और वहां रहनेवाले हिन्दुस्तान के भाग्यविधाता. कवि अरुण ...
आज़ादी के कुछ साल बाद जब जनता की उम्मीदों पर पानी फिरता दिखा, तब उस दौर के कवियों, लेखकों ने ...
इंसान पहले चीज़ें जमा करता है, फिर उन चीज़ों की देखभाल करता है और एक दिन पाता है कि उसकी ...
अगरआपका जन्म नारी के रूप में हुआ है तो आपको एक आदर्श नारी बनने के बजाय एक इंसान बनने का ...
पिता के होने और न होने के क्या मायने होते हैं, बता रही हैं पिता पर केंद्रित कवि नरेश चंद्रकर ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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