पंछियों को फिर कहां पर ठौर है: कुंवर बेचैन की कविता
किसी भी सुविधा को हासिल करने के लिए हमें कुछ न कुछ क़ुर्बान करना ही पड़ता है. मरहूम कवि कुंवर ...
किसी भी सुविधा को हासिल करने के लिए हमें कुछ न कुछ क़ुर्बान करना ही पड़ता है. मरहूम कवि कुंवर ...
नीम के आयुर्वेदिक महत्व के बारे में हमने कितना कुछ सुना है. वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना इसके इमोशनल महत्व के ...
तुलसी दास और रामचरित मानस विवाद के बीच क़रीब 25 साल पहले प्रकाशित कविता संग्रह ‘माटी के वारिस’ की कविता ...
बेहतर अवसर की तलाश में अपने गांव को छोड़कर शहरों की ओर रुख़ करना ज़्यादातर लोगों की मजबूरी होती है. ...
भारतीय कृषकों की स्थिति, परिस्थिति पर आधारित मैथिलीशरण गुप्त की कविता ‘किसान’ भले ही दशकों पहले लिखी गई हो, पर ...
आगे बढ़ना ही जीवन है और जीवन में आगे बढ़ते हुए बहुत कुछ छूट और टूट जाता है. टूटी और ...
शब्दों से खींची और कविता में ढली वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूड़ी की रचना ‘सुबह का फोटू’ आपके सामने एक सजीव ...
बहुत कुछ कर गुज़रने की इच्छा रखनेवाला आदमी किस तरह क़दम-क़दम पर थकान का शिकार होता है उसका लाजवाब वर्णन ...
जहां गहरी ख़ामोशी होती है, वहीं सबसे ज़्यादा शोर होता है. जो चला जाता है, वह हमेशा हमेशा के लिए ...
लोकतंत्र में जनता को ख़ुश करने का एक ज़रिया है. जिस लोकतंत्र को जनता अपनी जीत समझती है, उस लोकतंत्र ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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