प्रेम और आशा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. जहां प्रेम है, वहां आशा है. और दोनों को जोड़ती हैं प्रेम कविताएं. पढ़ें, प्रेम के गहरे मायने बताती हुई अमृता प्रीतम की यह कविता ‘मैं तुझे फिर मिलूंगी’.
मैं तुझे फिर मिलूंगी
कहां कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे कैनवास पर उतरूंगी
या तेरे कैनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूंगी
मैं तुझे फिर मिलूंगी
कहां कैसे पता नहीं
या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगों में घुलती रहूंगी
या रंगों की बांहों में बैठ कर
तेरे कैनवास पर बिछ जाऊंगी
पता नहीं कहां किस तरह
पर तुझे ज़रूर मिलूंगी
या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूंगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूंगी
मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूं
कि वक़्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है
पर यादों के धागे
क़ायनात के लम्हे की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूंगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूंगी
कहां कैसे पता नहीं
मैं तुझे फिर मिलूंगी!!
Illustration: Pinterest