रघुवीर सहाय की कविताएं आम आदमी के जीवन की छोटी-छोटी बातों को व्यापक अर्थों में व्यक्त करती हैं. उनकी स्त्री विषयक कविताएं छोटी लेकिन गहरी चोट करने वाली हैं. पढ़िए इसी तेवर की उनकी तीन कविताएं.
पढ़िए गीता
पढ़िए गीता
बनिए सीता
फिर इन सब में लगा पलीता
किसी मूर्ख की हो परिणीता
निज घर-बार बसाइए
होंय कंटीली
आंखें गीली
लकड़ी सीली, तबीयत ढीली
घर की सबसे बड़ी पतीली
भरकर भात पसाइए
औरत की ज़िंदगी
कई कोठरियां थीं कतार में
उनमें किसी में एक औरत ले जाई गई
थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया
उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथा
उसके बचपन से जवानी तक की कथा
चढ़ती स्त्री
बच्चा गोद में लिए
चलती बस में
चढ़ती स्त्री
और मुझमें कुछ दूर घिसटता जाता हुआ
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