कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए: दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल
जीवन यानी विरोधाभास. इन्हीं विरोधाभासों को एक कवि, एक शायर अपनी रचना में जगह देता है. दिवंगत दुष्यंत कुमार की ...
जीवन यानी विरोधाभास. इन्हीं विरोधाभासों को एक कवि, एक शायर अपनी रचना में जगह देता है. दिवंगत दुष्यंत कुमार की ...
भाग-दौड़ से भरे इस यांत्रिक जीवन में आदमी क्या से क्या हो गया है? शायर निदा फ़ाज़ली की यह मशहूर ...
क्या होता है, जब लंबे समय तक शहर में रहने के बाद एक दिन आप गांव जाते हैं? क्या गांव ...
एक लेखक को अपनी मेहनत का सही मोल नहीं मिल पाता. और जो मिलता भी है उसके लिए प्रकाशक की ...
वृक्ष हमारी स्वार्थपरकता का साक्षात गवाह है. जब तक हम जीवित रहते हैं, उसके फल, फूल, छाया का आनंद लेते ...
हम भारतीय अपने पुरुषत्व को लेकर कितने सजग रहते हैं, पंकज चतुर्वेदी की यह कविता बिना दिल के होते जा ...
अकेली रह रही औरतें, अपनी प्रतिभा के दम पर घर के बाहर नाम कमाती औरतें समाज की नज़रों में हमेशा ...
ट्रैजिडी क्वीन मीना कुमारी की निजी डायरियों के वारिस गुलज़ार साहब ने उनके लिए एक छोटी-सी कविता ‘शहतूत की शाख़ ...
आज के भारत में महात्मा गांधी (बापू) की तलाश कर रही है हूबनाथ पांडे की कविता ‘बापू’. मैं जब तक ...
धरती हमें इतना कुछ देती है, क्या हमें भी इसे कुछ नहीं देना चाहिए? बता रही है हूबनाथ पांडे की ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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